पण्डोखर धाम में सन, 2005 से पहले कोई भी पैसा नही लगता था। और न ही आज कोई पैसा लगता है। मात्र दस, बीस रूप की पर्ची कटती थी लेकिन अब धाम में पैसे क्यों लगते है
पण्डोखर सरकार धाम में पैसे क्यों लगते है?
पण्डोखर सरकार धाम में जो भी, आप फीस या दान के रूप में अपना योगदान देते है। वह सब पण्डोखर धाम आने वाले भक्तो पर ही खर्च होता है। आपके दिए हुऐ दान से पण्डोखर में मंदिरों का निर्माण,उठने बैठने के लिए पंडालों की व्यवस्था वा भंडारा नियमित रूप से आनेको कार्य चलते रहते है। इन सब कार्यों को करने के लिए काफी अधिक मात्रा में धन की आवस्यकता होती हैं। प्रति दिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु पण्डोखर धाम आते है। इसलिए पण्डोखर धाम में पैसे लगते है।
पण्डोखर सरकार धाम में पैसे नहीं लगते हैं।
पण्डोखर सरकार धाम में भक्त अपनी श्रद्धा के अनुसार दान करते है। दान के लिऐ किसी भी व्यक्ति को मजबूर नहीं क्या जाता और न ही किसी को, यहां धोखे से बुलाया जाता है। धाम में प्रत्येक व्यक्ति, अपनी मर्जी से यहां आता है। श्री हनुमान बालाजी महाराज के दर्शन से वा पुस्पावती नदी में स्नान करने मात्र से उसकी सभी मनोकामना पूर्ण होती हैं।धाम में आओ दर्शन करो और जाओ एसमे पैसे कहां लगते है।
पण्डोखर सरकार धाम में पैसे कब लगते है?
पण्डोखर धाम में पैसे तब लगते है। जब आप अपनी समस्या का समाधान श्री गुरुशरण महाराज जी से करवाना चाहते है। तो इसमें क्या गलत है,कोई भी डॉक्टर अपनी फीस लेता है। फीस के बदले आपका इलाज करता है। यहां तो ऐसा डॉक्टर है। जो आपसे मिलने से पहले आपकी समस्या बता देता है। और समस्या का इलाज भी करता है। कोई भी बड़े से बड़ा साइंटिस्ट भी किसी का भूतकाल भविष्य काल और वर्तमान नही बता सकता, इसके लिए भक्तो से दान के रूप में कुछ धन राशी लगती है। कुछ भक्त इसे गुरूजी की फीस कहते हैं, तो कुछ भक्त दान कहते हैं।
श्री गुरुशरण महाराज जी पण्डोखर सरकार धाम के पीठाधीश्वर हैं। उनके पास खाना खाने के लिए भी समय नहीं हैं। इसका क्या कारण है?प्रति दिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु गुरु जी से मिलने यहां आते है। महाराज जी प्रत्येक व्यक्ति से स्वं ही मिलते है। इतने लोगो से मिलने वा उनकी समस्या का समाधान करने में रात दिन एक कर देते है। सामान्य मनुष्य एक हफ्ते में बीमार हो जाएगा, परन्तु लगातार कई सालो से निरन्तर भक्तो की सेवा में लगे रहते है। इसको सायद ही कोई समझ पता है। आने वाले समय में लाखो रुपए देकर भी गुरु जी से मिलना सम्भव नहीं होगा, क्योंकि दरबार में भक्तो की संख्या बढ़ती ही जा रही है। इसी के कारण महाराज जी से कोई व्यक्ति जल्दी मिलना चाहता है। तो उसे गुरूजी के टाईम के बदले में पैसे देने पड़ते है। यही पैसे आश्रम की व्यवस्था बनाने में लगते है।
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